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कासी के रूसल बरुआ, बनारस कैने जाय / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कासी के बरुआ आयल<ref>आया</ref> गे माइ, ठाढ़ भेल<ref>खड़ा हुआ</ref> कवन बाबा दुआर, भीखि देहो नरायन।
भीखि नेने<ref>लेकर; लिये हुए</ref> ठाढ़ भेली मामा कनिा मामा, बरुआ हाँसै मुख फेरी, भीखि देहो नरायन॥1॥
असरो<ref>‘पसरो’ का अनुरणानात्मक प्रयोग</ref> न लेबऽखि पसरोपसर; आधी अंजलि; एक हाथ की तलहत्थी में जितना आ सके</ref> न लेबऽ, हम लेबऽ बरद लदाइ<ref>लदवाकर</ref>, भीखि देहो नरायन।
कासी के बरुआ आयल गे माइ, ठाढ़ भेल कवन चाचा दुआर, भीखि देहो नरायन॥2॥
भीखि नेने बहर भेली चाची कनिया चाची, बरुआ हाँसै मुख फेरी, भीखि देहो हे चाची।
असरो न लेबऽ हम पसरो न लेबऽ, हम लेबऽ बरदे लदाइ, भीखि देहो नरायन॥3॥

शब्दार्थ
<references/>