भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कीन अहिड़ो कॾहिं बि शाह थिजे / अर्जुन ‘शाद’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:22, 7 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्जुन मीरचंदाणी 'शाद' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कीन अहिड़ो कॾहिं बि शाह थिजे
जो ॿिया पाले पाण पाह थिजे!

मरु लड़ी जे न थीं लड़ी आज़ाद
जी गुलामीअ में छो तबाह थिजे!

ज़ोर सां इंक़िलाबी नारो हणि
छो डिॼी मौत जो गिराहु थिजे!

मर्दए मैदान थी वतन जो रहु
वक़्तए मुश्किल वसीलो वाहु थिजे!

जे रहनि जु़ल्म ते गुलामीअ में
तिनि लइ आज़ादगीअ जेा माह थिजे!

‘शाद’ पल भी न रहु गुलामीअ में
जो मुजस्सिम इएं गुनाहु थिजे!

(1942)