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कोई किसी का हाले दिल मुड़कर / तारा सिंह

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कोई किसी का हाले दिल मुड़कर पूछता नहीं
जो जाता यहाँ से, कभी लौटकर आता नहीं

भरी महफ़िल में मेरे प्यार को जिस कदर
बे-आबरू किया, ऐसा कोई बुलाकर करता नहीं

जहाँ कुछ लोग वफ़ा करके भी शर्माते हैं
वहीं ज़फ़ा करने वाला ज़फ़कार शर्माता नहीं

अपनी बेताबी बढ़ाकर,उसकी कदमों तक को ले
जाता नहीं, आज तनहा दिल बैठकर रोता नहीं

क्यों न चीखूँ किसी को याद कर, मेरी आवाज
को सुनकर कोई क्यों कर आता नहीं