भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोई नग़्मा महब्बत का गाएँ चलो / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:47, 24 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |अनुवादक= |संग्रह=ट...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई नग़्मा महब्बत का गाएँ चलो
सारे शिकवे गिले भूल जाएँ चलो

एक मुद्दत हुई एक दूजे से हम
रूठे-रूठे से हैं मान जाएँ चलो

तन्हा-तन्हा चले देर तक, दूर तक
अब क़दम से क़दम फिर मिलाँ चलो

प्यार की रौशनी बाँटने के लिए
दीपकों की तरह जगमगाएँ चलो