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कौन अपना है ये चेहरों से नहीं जानते हैं / गोविन्द गुलशन

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कौन अपना है ये चेहरों से नहीं जानते हैं
हम तो नाबीना हैं आवाज़ से पहचानते हैं

घूम लेते हैं जहाँ भर में कहीं जाए बग़ैर
हम वो आवारा हैं जो ख़ाक नहीं छानते हैं

बात निकलेगी जो मुँह से तो बिखर जाएगी
आप इस शहर के लोगों को नहीं जानते हैं

सामना करते हैं तूफ़ान का जी-जान से हम
हम सफ़ीने पे कभी पाल नहीं तानते हैं

झूठ बोलें ये मुनासिब तो नहीं लगता मगर
सच अगर साफ़ कहें लोग बुरा मानते हैं