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कौन सुने / राजेन्द्र वर्मा

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कौआरोर मची पंचों में,
सच की कौन सुने?

लाठी की ताक़त को
बापू समझ नहीं पाये
गये गवाही देने
वापस कंधों पर आये

दुश्मन जीवित देख दुश्मनी
फुला रही नथुने ।

बेटे को ख़तरा था,
किन्तु सुरक्षा नहीं मिली
अम्मा दौड़ीं बहुत,
व्यवस्था लेकिन नहीं हिली

कुलदीपक बुझ गया,
न्याय की देवी शीश धुने ।

सत्य-अहिंसा के प्राणों को
पड़े हुए लाले
झूठ और हिंसा सत्ता के
गलबहियाँ डाले

सत्तासीन गोडसे हैं,
गाँधी को कौन गुने ?