भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खंजर पर खंजर / विनय राय ‘बबुरंग’

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनय राय ‘बबुरंग’ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गजब क तमासा कइल जा रहल बा।
छू मन्तर से हमके छलल जा रहल बा॥

जइसन करनी ओइसन भरनी
कहि कहि के हमके ठगल जा रहल बा।

बिच भंवर में फंसा के ई नइया
किनारा तूं अइलऽ कहल जा रहल बा।

अइसन फहरल ई झंडा-तिरंगा
नइया ई केने बहल जा रहल बा।

कबो बहे पछुवां, कबो बहे पुरुवा
दुविधा में पड़ि के जियल जा रहल बा।

जबले बा सांस, आस कर मोरे भइया
दही अस त जिनगी महल जा रहल बा।

कइसे ई कपटियन क नास होई भइया
खंजर पर खंजर चलल जा रहल बा।