भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गधा पँजीरी खा गया, फिर भी रहे विनीत / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:16, 3 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ग़ज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गधा पँजीरी खा गया, फिर भी रहे विनीत।
पतिव्रता जिस को कहें, करे गैर से प्रीत॥

वही लाभ सब कुछ लगे, जो पायें तत्काल
पड़ी कुल्हाड़ी पाँव पर, किन्तु नहीं भयभीत॥

मूँद नयन सुनते रहें, नित्य नयी अफ़वाह
मीठी मीठी जो कहे, वही लगे अब मीत॥

अपने ही हाथों दिया, आज भविष्य उजाड़
बैठे गीध मशान पर, छेड़ रहे संगीत॥

धूर्त शकुनि के हाथ में, राजनीति की डोर
स्वार्थ सिद्धि हित पालता, है विरोध की रीत॥

थोथे वादों से कभी, बनता नहीं भविष्य
मिट जायेगी कामना, ज्यों बालू की भीत॥

दुनियाँ में मिलता नहीं, माँगे से अधिकार
ताकत से होते सदा, कर्म नीति विपरीत॥