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गरीबा / गहुंवारी पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा

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होत बालक्रीडा प्रतियोगिता, भर उत्साह लेव तुम भाग
स्पर्धा मं विजय अमर लव, मंय हा रखत तुम्हर पर आस।
पूर्वाभ्यास करव मिहनत कर, ऊंचीकूद अउ बोरादौड़
खेल करव या पल्ला दउड़व, पर सब होय नियम के साथ।”
लइका मन के मन हा आगर, जे चाहत ते खुद मिल गीस
खेल करे के साध मिटत हे, स्पर्धा बर पूर्वाभ्यास।
पहुंचिस गुहा हा झंगलू तिर मं, किहिस -”इंहा शिक्षक दू ठोक
मगर कहां शिक्षिका जगौती, ओकर दर्शन तहु कर लेंव।
मंय थुकेल ला धर लेगत हंव, ओहर इंहा पढ़त नइ पाठ
ओला इंहा बिगाड़त हव तुम, होत छात्र के भावी नाश।”
कुरबुर करत गुहा हा मन मन, धरिस थुकेल के कंस के हाथ
शाला ले रकमिका के निकलिस, अउ आ गीस सड़क के पार।
गीस ग्रामपंचायत घर तिर, जिंहा कृषक मन हें सकलाय
देखत तहसीलदार के रद्दा, पर नइ आवत तहसीलदार।
बंजू मन हा खेत खरीदिन, होय रजिस्ट्री उंकर जमीन
मगर प्रमाणीकरण हा अटके, खाता मं लिखाय नइ नाम।
पटवारी, बंजू ला बोलिस -”चहत प्रमाणीकरण हा होय
तुम्मन ओकर खरचा लानव, तंह मंय करिहंव तुम्हर सहाय।
साहब ला मंय रुपिया देहंव, ओहर दिही दस्तखत दान
पूर्ण प्रमाणीकरण के बूता, तुम्हर नाम चढ़ जहय जमीन।”
बंजू मन हा रुपिया गिन दिन, पटवारी पर हे विश्वास
घूंस लेत अउ देत उहां पर, पर कोई नइ करत विरोध।
अब किसान तिर काम हा नइये, शाला डहर ध्यान ला दीन
अब झंगलू के मजा चखाहंय, घोड़ा रोग बेंदरा पर गीस।
सुखी कोचक के उभरावत हे -”मोर बात ला सब सुन लेव
झंगलू शिक्षक छात्र बिगाड़त, समय ला काटत गपशप मार।
शाला तनी दृष्टि ला फेंकव, खेलत छात्र पढ़इ ला त्याग
अंदर मं झंगलू हा सोवत, टेबल ऊपर रख के गोड़।
शिक्षक हा कर्तव्य ले भगथय, ओला गांव मं राखन कार!
ओकर स्थानांतर होवय, तभे छात्र मन के उद्धार।”
झंगलू के विरुद्ध मं लिख दिन, जमों किसान शिकायत पत्र
शिक्षक हा कर्तव्य निभावत, तब ले ओकर होत विरोध।
धनवा डकहर करत कुजानिक, ओकर झंगलू करत विरोध
सुखी अउ डकहर बल्दा लेवत, करत नमूसी कालिख नाम।
झंगलू जहां खबर ला पाइस, होवत मन मं दुखी उदास
छुट्टी बाद अपन घर जावत, मेहरूपहुंचिस ओकर पास।
कहिथय -”एक बात सोचे हंव – कवि मन ला मंय चहत बलाय
कवि सम्मेलन गांव मं होवय, तंय रख सकथस अपन विचार।”
झंगलू कहिथय -”मंय खुश होवत, बोले हवस बात तंय ठीक
मगर गांव के स्थिति नाजुक, मुड़ पर रुसी अस दुख राज।
साफ दृष्टि से यदि हम देखत, होय बंद धार्मिक त्यौहार
कवि मन ला यदि करत निमंत्रित, परिहय खूब खर्च के मार।
एक घांव सोनू हा लानिस, इहिच गांव मं कई विद्वान
सुन्तापुर के पुरिस ठिकाना, बिकगे बर्तन अन्न मकान।”
मेहरूकथय -”जेन कवि आवत, ओमन नइ मांगत कुछ खर्च
मात्र पेट भर जेवन मांगत, अतका मं परिहय का फर्क!”
झंगलू हा स्वीकृति फट देथय -”नेकी कर झन कर पुचपूच
लुकलुकात ग्रामीण सबो झन, पर ओमन ला पहिली पूछ।”
झंगलू पुन& कथय मेहरूला -”हम राखे हन जे उद्देश्य
“सुम्मतराज’ गांव मं आवय, पांय सबो झन सुख आनंद।
धनवा हा विरोध मं जावत, ओकर बात उमंझ मं आत
पर विडम्बना हे एके ठन। ओला मंय फोरत हंव साफ-
गांव मं बन्जू अस अउ मनखे, जेकर जीवन हा कुछ ऊंच
ओमन सोचत- हम पूंजीपति, हम्मन आन अचक धनवान।
हवय जरुरत जिनिस हा पूरा, ककरो पास मंगन नइ भीख
हर प्रकार ले हम सक्षम हन, हमर ले बढ़के दूसर कोन!
हमर बाढ़ देखत कंगला मन, तंहने उंकर जलन बढ़ जात
हम्मन ला कंगला होवय कहि, कइ योजना बनावत रोज।”
झंगलू फेर कथय मेहरूला -”मोर बात सुन बन गंभीर
बंजू मन हा पूंजीपति नइ, न ओमन धनवान विशिष्ट।
ओमन भ्रम रद्दा मं रेंगत, एकर ले सब लक्ष्य हा नाश
धनसहाय हा लाभ ला पाहय, जनता ला नंगत नुकसान।
सुम्मत राज लाय बर सोचत, एकर पूर्व होय ए काम
बंजू मन के भ्रम मिट जावय, ओमन करंय हमर सहयोग।”
मेहरूपैस सलाह बने अस, उहां हे हटथय छुट्टी मांग
थोरिक ओहिले मिलिस गरीबा, जेहर खसर खुजावत जांग।
मेहरूखलखल हंस के कहिथय -”तोला कब के खजरी होय
एकर दवइ करा तंय झपकुन, काबर चुप बइठे कंजूस!”
“बिन श्रम रचना पढ़ धन झोरत, भरत अपन घर देश ला लूट
तोला हरियर तगवा सूझत, तब तंय पर ला एल्हत खूब।
वन के पशु हा खेत मं घुसरत, बिरता के करथय खुरखेद
हम किसान पर आत मुसीबत, ओकर हिरक देखइया कोन!”
अभी गरीबा अउ ओरियातिस, मेहरूबीच मार दिस छेंक
सुनिस गरीबा तंह खुश होवत, करदिस हरहिंछा स्वीकार –
“हमर गांव मं कवि मन आवत, ओमन देहंय नेक सलाह
भ्रम अंधियार के नसना टुटिहय, हम्मन धरबो उत्तम राह।”
मेहरूकिहिस गरीबा ला अउ -”सुम्मत राज के लेवत पक्ष
एकर बीच बिघन हा आवत, तंय जासूस असन रख ध्यान।
भरे उच्चता बंजू मन मं, उंकर उच्चता होय समाप्त
पर ए काम बहुत कठिनाई, तंय कर पूर्ण बुद्धि के साथ।”