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गहराई में आकर देखो / दिनेश गौतम

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गहराई में आकर देखो, एक वेदना जमी मिलेगी,
अधरों पर मुस्कान भले हों, पर नयनों में नमी मिलेगी।

यद्यपि बाहर लगें ठहाके,
भीतर होगी एक उदासी,
सागर जल से भरा मिले ज्यों
पर लहरें प्यासी की प्यासी।
प्यास बुझानेवाली धारा, कहीं ठिठककर थमी मिलेगी।

विश्वासों के जीर्ण महल में,
खंडित प्रतिमाओं को धारे,
प्रेम प्रवंचित पड़ा मिलेगा,
वहीं दाँव पर सब कुछ हारे,
पर जो छलना है वह तो बस, किसी और संग रमी मिलेगी।

ऊपर-ऊपर गीत मिलेंगे,
भीतर- भीतर रुदन मिलेगा,
झूठी चमक पोत कर बैठा,
कुम्हलाया हर वदन मिलेगा।
दिख जाएगी जहाँ पूर्णता, वहीं देखना कमी मिलेगी।

रंगमंच हो भले यहाँ पर,
तेज रोशनी से चुंधियाया,
पर नेपथ्य देखने जाना,
वहाँ मिलेगी काली छाया,
यहाँ उत्सवी स्वर के पीछे, धुन कोई मातमी मिलेगी।