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गीत 11 / सतरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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ईश्वर लेल करल कर्मो के, हे अर्जुन ‘सत्’ जानोॅ
यग-दान आरो तप में स्थित छै ‘सत्’ पहचानोॅ।
श्रद्धा प्रेम निष्ठा रखि केॅ
सात्विक जन यग करै छै,
मन में कर्ता भाव न आनै
सब टा कर्म करै छै,
कर्म करै के काल न संशय मन में तनियोॅ आनोॅ
ईश्वर लेल करल कर्मो के, हे अर्जुन ‘सत्’ जानोॅ।
बिना श्रद्धा के हवन-दान-तप
सब कुछ असत् कहावै,
जेतना भी शुभ काज करै
सब असत् नाम ही पावै,
दोनों लोक लेल हय झूठा, सत्य कहल तों मानोॅ
ईश्वर लेल करल कर्मो के, हे अर्जुन ‘सत्’ जानोॅ।
हवन-दान-तप-यग मनुष के
मन के शुद्ध करै छै,
मोने जब नै शुद्ध त कारज
आतम विरुद्ध करै छै,
आतम शुद्धि बिन श्रद्धा न जागै, परम सत्य तों मानोॅ
ईश्वर लेल करल कर्मो के, हे अर्जुन ‘सत्’ जानोॅ।