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गीत 4 / नौवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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सब भूतोॅ के धारक-पोषक, हम सब के कारक छी,
हमरोॅ माया अद्भुत अर्जुन, हम छी, हम नै भी छी।
हम नै, हमरोॅ योगशक्ति से
साँसे जग उपजै छै,
जे हमरा पावै ऊ
माया के स्वरूप समझै छै
हम अपनोॅ संकल्प शक्ति से जग के सृजन करै छी।
जैसें कि आकाश से वायु
उपजै छै, विचरै छै
लेकिन हौ वायु आकाश में
स्थिर सदा रहै छै,
वैसी ना हमरा में जन, हम भी जन में स्थिर छी।
निराकार-समभाव-अकर्ता
जैसे ई अम्बर छै,
वैसीं ना समभाव अकर्ता
अर्जुन रूप हमर छै,
निराकार छी, निर्विकार छी, हम जग के तारक छी
सब भूतोॅ के धारक-पोषक, हम सब के कारक छी।