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गीत 5 / पाँचवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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हय तन छिक बैकुण्ठ धाम, यै में सोहै नवद्वार
सदा निवास करै यै में, सच्चिदानन्द सरकार।
सांख्य योगि जन अन्तः के
परमेश्वर के जानै छै,
अन्तः के ईश्वर के
परम नियंता ऊ मानै छै,
करै नियंत्रित जे मन-बुद्धि, इन्द्रिय के संचार
हय तन छिक बैकुण्ठ धाम, यै में सोहै नवद्वार।
सब इन्द्रिय के कर्म योगिजन
कर्म द्वार पर छोड़ै,
और कर्म के फल से भी
सहजें अपनोॅ मुँह मोड़ै,
कभी भूल से भी नै त्यागै संयम के हथियार
हय तन छिक बैकुण्ठ धाम, यै में सोहै नवद्वार।
परमेश्वर नै कर्ता में
कर्तापन कभी रचै छै,
परमेश्वर नै कर्ता अन्दर
कभी कर्म सिरजै छै,
परमेश्वर नै रचै काम फल, नै लौकिक व्यवहार
हय तन छिक बैकुण्ठ धाम, यै में सोहै नवद्वार।