भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत की सरन / महेश उपाध्याय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 21 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश उपाध्याय |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहरों से सीख लिए
सारे ठनगन !
ओरी ! ओ ! नागरी दुल्हन

कलियों की उर्वशी हँसी
तेरे हर अंग में बसी
फैलाती गन्ध की शिकन

दीप-शिखा देह सोनई
अन्धियारा चीरती गई
तेरे अनुभाव की किरण

आँखों में छन्द आँजकर
रसवन्ती देह माँजकर
जा बैठी गीत की सरन