भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीर्हऽ / कुंदन अमिताभ

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:10, 9 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुंदन अमिताभ |अनुवादक= |संग्रह=धम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खोली लेॅ गीर्हऽ
तभिये तरान छौं।
खोलै छहो किताब
तेॅ गीर्हऽ खोलऽ
चलाबै छहो जुबान
तेॅ गीर्हऽ खोलऽ।
खोलऽ हवा
खोलऽ पानी
खोलऽ रौदा
खोलऽ चाँदनी।
खोलऽ सरंग
सब छै तंग
छेड़ऽ जंग।
नै अबेॅ चिढ़ऽ
खोली लेॅ गीर्हऽ।