भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुड़ियों का घर / श्रीनाथ सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुड़ियों का घर बना हुआ है चमकदार चमकीला।
सुनो जरा तो बतलाती हूँ कैसा रँग रंगीला !
विविध रंगों से रंगा हुआ है हरा,लाल औ' पीला
कहीं गुलाबी कहीं बैंगनी और कहीं है नीला।
हैं किवाड़ सोने के उसमें,चौखट उसकी चांदी।
भीतर रहती गुड़िया रानी बाहर उसकी बाँदी।
अति चमकीले रँग रंगीले आँखों को सुखकारी।
खिड़की औ' दरवाजों में हैं सुन्दर शीशे भारी।
भांति भांति के चित्र टंगे हैं भीतर उसके भाई!
साथ हमारे मेला जाकर गुड़िया थी जो लाई।
छोटी खाटें,छोटे गद्दे,छोटे बरतन भांडे।
सभी तरह की चीजें छोटी,छोटी हांडी हांडे।
बाहर से है हुई सफेदी भीतर रँग रंगीला।
इसी भांति है सजा सजाया सारा घर भड़कीला।
गुड़ियाँ सारी बड़ी दुलारी रहतीं हर्षित भाई!
लड़तीं और झगडतीं यदि वे आ पड़ती कठिनाई।
यदि मैं भी गुड़िया होती,इस घर में घुस जाती।
साथ उन्ही के रहती दिन भर कभी न बाहर आती।