भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुलनार-गुलनार हो गया आसमान / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:25, 14 जनवरी 2011 का अवतरण ("गुलनार-गुलनार हो गया आसमान / केदारनाथ अग्रवाल" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुलनार
गुलनार
हो गया आसमान
देखते-देखते इंसान के

चमत्कार
चमत्कार
हो गया जहान
देखते-देखते इंसान के

आलोक
आलोक
हो गया आत्मज्ञान
देखते-देखते इंसान के

संश्लोक
संश्लोक
हो गया हृत्-प्रान
देखते-देखते इंसान के

रचनाकाल: ०७-०९-१९७६, बाँदा