भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले / राहुल शिवाय

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:05, 23 मार्च 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले
दुख भरी इस ज़िन्दगी से चल ख़ुशी को ढूँढ ले

दूर है मंज़िल भले ही और रस्ता है कठिन
ज़िंदगी के इस सफ़र में तू किसी को ढूँढ ले

मौत के दर पर खड़ी है लाख तेरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी अनमोल है, तू ज़िन्दगी को ढूँढ ले

क्यों भला प्यासा खड़ा है इस समंदर के क़रीब
प्यास पल में मिट सके, ऐसी नदी को ढूँढ ले

जिसने ईमां को ही दौलत आज तक समझा यहाँ
भीड़ में खोए हुए उस आदमी को ढूँढ ले