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चन्द को चकोर देखै निसि दिन करै लेखै / आलम

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चन्द को चकोर देखै निसि दिन करै लेखै,
               चन्द बिन दिन-दिन लागत अन्धियारी है ।
आलम सुकवि कहै भले फल हेत गहे,
               काँटे-सी कटीली बेलि ऐसी प्रीति प्यारी है ।
कारो कान्ह कहत गँवार ऐसी लागत है,
               मेरे वाकी श्यामताई अति ही उजारी है ।
मन की अटक तहाँ रूप को बिचार कैसो,
               रीझिबे को पैड़ो अरु बूझ कछु न्यारी है ।