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चार गो मुक्तक / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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-एक-
जनम-जनम केॅ पत्नी प्यारी
कैसें होतै भरपाई?
विधुर विलाप हमरा भागऽ में
आगाँ कुआँ, पाछाँ खाई।

-दू-
पंचतत्व गोंगऽ होय गेलै,
पता ठिकानों कुछ नैं मिललै।
केनाँक लिखिहौं आपनां हाल?
तोरा बिना कमल नैं खिललै।

-तीन-
केकरा सें करियै सलाह मशबिरा?
बड़का भारी समस्या।
सभ्भै रोॅ अलगे तान-राम
अपना अरमानों रोॅ हत्या।

-चार-
केवल सुसताय लेल बैठै छीयै,
भोजन पानी सब भुललै।
अडज, पिंडज उदभिज पूछलाँ
केकरों मुँह नैं खुल लै।

09/02/16 प्रातः 7.40