भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिडिया और चुरूंगुन / हरिवंशराय बच्‍चन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 4 दिसम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात,
और सुनी जो पत्‍ते हिलमिल,
करते हैं आपस में बात;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झूककर जाना मूल;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

कच्‍चे-पक्‍के फल पहचाने,
खए और गिराए काट,
खने-गाने के सब साथी,
देख रहे हैं मेरी बाट;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

उस तरू से इस तरू पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोइ अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?

'आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया'