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छोटी छोटी कविताएँ / भवानीप्रसाद मिश्र

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कोई भी काम
कर्तव्य बन जाता है उसी क्षण
जब हमें लगता है कि
वह उस निष्ठा का अंग है
जो जीवन के पहले क्षण से
हमारे संग है.

———–
हमारा सब कुछ
अपनी-अपनी जगह हो
तभी समझ सकते हैं
हम इतनी छोटी बात भी
जैसे एक और एक दो
———

अपने प्रति सख्त बनो
जिससे नरम बन सको
दूसरों के प्रति
अच्छी है अति यहीं
और कहीं नहीं
———

खुल जाएँ अगर दृष्टि के द्वार
तो दिखने लगे सब कुछ
आँखों के सामने वैसा ही
जैसा वह है अनंत याने
तब फिर न दौड़ें
-फिरें हम कुछ भी पाने.
———

जो जितना ऊंचा चढ़ता है
उतना साबित कदम बनाना पड़ता है उसको
मौत का सबब बन सकती है एक पल मे
ऊंचाई पर लापरवाही.