भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब मिलूँगा आपसे तब शायरी हो जाएगी / कैलाश झा 'किंकर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:42, 19 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा 'किंकर' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब मिलूँगा आपसे तब शायरी हो जाएगी
आपसे मिलकर ग़जल मेरी सही हो जाएगी।

होश खो बैठे सभी बस आपको ही देखकर
क्या पता था आँख की जादूगरी हो जाएगी।

भोर होते ही निकलता काम पर मज़दूर है
काम के बिन तो समस्या ही बड़ी हो जाएगी।

हौसला रखकर समय के साथ चलता हूँ सदा
आप भी मेरी तरह तो दोस्ती हो जाएगी।

सोचता हूँ आपको तो जागता विश्वास है
आपके पाँवों से धरती मखमली हो जाएगी।

जंग जैसी बद-जुबानी आज पूरे देश में
जीत भी जाएँ तो कल शर्मिंदगी हो जाएगी।