भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रास्ता सुनसान हुआ / मोहसिन नक़वी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 25 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहसिन नक़वी }} {{KKCatGhazal}} <poem> जब से उस न...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रास्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुकसान हुआ

मेरे हाल पे हैरत कैसी दर्द के तनहा मौसम में
पत्थर भी रो पड़ते हैं इन्सान तो फिर इन्सान हुआ

उस के ज़ख्म छुपा कर रखिये खुद उस शख्स की नज़रों से
उस से कैसा शिकवा कीजिये वो तो अभी नादाँ हुआ

यूँ भी कम आमेज़ था “मोहसिन” वो इस शहर के लोगों में
लेकिन मेरे सामने आकार और ही कुछ अंजाम हुआ