भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जवान हो रही लड़की - तीन / कमलेश्वर साहू

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 26 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश्वर साहू |संग्रह=किताब से निक...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पहले हथेली में ख्वाब सजाती है
फिर सोचती है
दुनिया के बारे में
दुनिया की खूबसूरती के बारे में
और अंत में जब
थक जाती है सोचते सोचते
कहती है अपने आप से
दुनिया
मुझसे ज्यादा खूबसूरत नहीं
संभवतः सच कहती है
हथेली में ख्वाब सजाकर
सोचने वाली लड़की
पड़ोस में रहने वाले लड़के ने
लिखा भी था
एक बार
चोरी-छिपे दिये अपने प्रेम पत्र में
और नाराज हो गई थी वह
उस पर
उस वक्त !