भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी से हज़ारो शिकवे हैं / मोहम्मद इरशाद

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 18 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मोहम्मद इरशाद |संग्रह= ज़िन्दगी ख़ामोश कहाँ / म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ज़िन्दगी से हज़ारों शिकवे हैं
कितने सच्चे और कितने झूठे हैं

जिनका ज़िन्दा ज़मीर है यारो
ऐसे इंसाँ जहाँ में कितने हैं

दरमियाँ फासले है मिलों के
यूँ तो मिलने को रोज़ मिलते हैं

तुम कहो किस की बात करते हो
ज़िन्दगी के हज़ारों किस्से हैं

मैंने सोचा कि मैं ही अच्छा हूँ
लोग मुझ से भी कितने अच्छे हैं

जो इधर से उधर की करते हैं
लोग ‘इरशाद’ कितने फितने हैं