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जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको / 'ज़फ़र' इक़बाल

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जिस से चाहा था, बिखरने से बचा ले मुझको
कर गया तुन्द हवाओं के हवाले मुझ को

मैं वो बुत हूँ कि तेरी याद मुझे पूजती है
फिर भी डर है ये कहीं तोड़ न डाले मुझको

मैं यहीं हूँ इसी वीराने का इक हिस्सा हूँ
जो जरा शौक से ढूढ़ें वही पा ले मुझको