भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जी चाहता है / मनीष कुमार झा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 9 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष कुमार झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई गीत गाने को जी चाहता है
गजल गुनगुनाने को जी चाहता है

गगन में चमकते करोड़ों सितारे
घड़ी भर टिमक कर छिपेंगे बिचारे
सितारों से रौशन जहाँ ढूँढने को
सितारों पर जाने को जी चाहता है

चली सरसराती हवा बाँह खोले
फिजाएँ मधुर मौसमी राग घोले
लुटाए कोई मस्तियाँ ज़िन्दगी की
वहीं जां लुटाने को जी चाहता है

कहीं कोई आशा रहे ना अधूरी
मिले दिल से दिल, ना रहे कोई दूरी
हर इक आदमी प्यार का देवता हो
वो जन्नत बसाने को जी चाहता है