भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठे टाही लगवले बाड़, मिली ना / अंजन जी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 1 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजन जी |संग्रह= }} {{KKCatKataa}} Category:भोजपुरी भाषा <poem> झू…)
झूठे टाही लगवले बाड़, मिली ना
ओह ऊसर में गुलाब खिली ना ।
जानते बाड़, जवन भूत ध लीहले बा
केतना फूंक मारल जाई, ढिली ना ।