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टूटे दिल को मिली दवा ही नहीं / लव कुमार 'प्रणय'

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टूटे दिल को मिली दवा ही नहीं
उस पे घर का मेरे पता ही नहीं

किस तरह ईद हो मीठी अपनी
चाँद भी अब तलक दिखा ही नहीं

लाख मंत्रर पढ़े मगर फिर भी
कोई जादू यहाँ चला ही नहीं

मैं तो आवाज दे रहा कब से
आज भी दोस्त ने सुना ही नहीं

रोज मिलता न बात करता है
जैसे मुझको वो जानता ही नहीं

प्यार करना मैं छोड़ दूँ कैसे
ऐसे साँचे में मैं ढला ही नहीं

हौसला देखकर समझ लेना
ये 'प्रणय' जुल्म से डरा ही नहीं