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ढकमक वाग / दुर्गालाल श्रेष्ठ

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भँगेराको चिर्चिर चिर्चिर
कागको का द्र का द्र,
त्यसमाथि झन् घुघुर्र घुघुर्र
परेवाको आहा !

सबै मिली यति मीठो
बन्यो यौटा राग,
सररर पुछियो है
पवनकै दाग !

लत्रिएझैं इन्द्रेणीको
एकटुक्रा भाग,
थरी-थरी फूल आहा !
ढकमक वाग !