भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
त लागल हमरा वसंत आएल / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:53, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना |अनुवादक= |संग्रह=हम्मर लेह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
महुआ रसाके चुए लागल
बाग में कोयलिया बोले लागल
बउराके मन जब झूमे लागल
त लागल हमरा वसंत आएल।
आम के पेड़ मजर गेलक
फूल पराग से भर गेलक
लीची फरल घंऊछे-घंऊछे
त लागल हमरा वसंत आएल।
मन हम्मर नाचे भंओरा संगे
तितली जइसन उड़े अकास
फगुआ में जब फाग सुनली
त लागल हमरा वसंत आएल।
जारा से ठिठुराएल तन-मन
रउदा में हुलसल हरसाएल
बउराएल हवा हमरा बउड़एलक
त लागल हमरा वसंत आएल।