भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम देखो माई आज नैन भर / गोविन्ददास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:48, 16 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्ददास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatP...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम देखो माई आज नैन भर हरि जू के रथ की सोभा।
प्रात समय मनो उदित भयो रवि निरखि नयन अति लोभा॥१॥

मनिमय जटित साज सरस सब ध्वजा चमर चित चोबा।
मदनमोहन पिय मध्य बिराजत मनसिज मन के छोभा॥२॥

चलत तुरंग चंचल भू उपर कहा कहूं यह ओभा।
आनंद सिंधु मानों मकर क्रीडत मगन मुदित चित चोभा॥३॥

यह बिध बनी बनी ब्रज बीथन महियां देत सकल आनंद।
गोविन्द प्रभु पिय सदा बसो जिय वृंदावन के चद॥४॥