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तुम मिली जैसे विजन को सुमन की मुस्कान / श्यामनन्दन किशोर
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तुम मिली, जैसे विजन को सुमन की मुस्कान!
शून्य मंदिर में अचानक
यह विकल पदचाप!
सच पुजारी का हुआ क्या
स्वप्न अपने आप?
चिर विरह की यामिनी में, तुम मिलन अनजान!
आज मरु में बह पड़ी क्यों
भूलकर रसधार?
मुखर पतझड़ में हुआ
कैसे भ्रमर-गुंजार?
तुम मिली जैसे मरण को साँस का प्रतिदान!
आज से तो जिन्दगी यह
रह न पायी भार!
अब न गूँथेगी जवानी
आँसुओं का हार!
डूबते का एक तिनका ही सबल जलयान!
(12.5.54)