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तुम से हम को मिले जहां के सुख सारे / रंजना वर्मा
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तुम से हम को मिले जहां के सुख सारे
लेकिन हम तो खुद से ही जीवन हारे
चन्दा सूरज नहीं मुकद्दर में तो क्या
आसमान में चमक रहे कितने तारे
डोर स्नेह की बंधी हुई थी टूट गयी
नयनों के संकेत नयन से सुन प्यारे
धरती तपती उस की प्यास बुझाने को
उमड़े बादल जल - भण्डार स्वयं वारे
नदियाँ टूट टूट कर सागर में गिरतीं
कब लहरों ने कहा सिन्धु जल को खारे
पर्वत के अंतर से फूट बहा झरना
ठहर जरा कलकल मन में गुनता जा रे
सुनता रहा जमाने की तू जीवन भर
अब तो कुछ इस दिल की भी सुनता जा रे