भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा नाम / वाज़दा ख़ान

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:45, 21 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वाज़दा ख़ान |संग्रह=जिस तरह घुलती है काया / वाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारिश के छोटे-छोटे
सैकड़ों टुकड़े
बटोरे हैं मैंने साल भर

उन टुकड़ों पर नाम लिख-लिखकर
तुम्हारा धरती हूँ झील की कोख में
झील जिसे मैं लाई हूँ उधार
आसमान से

भर जाएगी झील
तुम्हारे नाम लिखे बारिश के
टुकड़ों से
तो लौटा दूँगी उसे
फिर माँगकर लाऊँगी नई
झील

चलता रहेगा यह क्रम अनवरत सदी के
मुहाने से
अन्तिम द्वार तक ।