भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी याद को दिल से जुदा होने नहीं देता / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 24 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |अनुवादक= |संग्रह=ट...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारी याद को दिल से जुदा होने नहीं देता
तुम्हारा दर्द रातों को मुझे सोने नहीं देता

ख़िरदमंदी<ref>समझदारी, अक़्लमन्दी</ref> मिरी मुझको वफ़ा करने नहीं देती
ये पागल दिल कि मुझको बेवफ़ा होने नहीं देता

मैं हर सूरत में दिलबर तेरी सूरत देख लेता हूँ
तिरे चेहरे को ओझल आँख से होने नहीं देता

किसी की याद होंटों पर हँसी आने नहीं देती
कोई वा'दा है मेरी आँख को रोने नहीं देता

वो मुझ पर मेह्‌रबाँ है ये तो है इस बात से ज़ाहिर
मैं जो कुछ चाहता हूँ वो उसे होने नहीं देता

बशर<ref>इंसान</ref> कब से किये बैठा है अपनी मौत का सामां
ख़ुदा अपनी ख़ुदाई को फ़ना होने नहीं देता

न जाने किस तरह का दे दिया है दिल मुझे तूने
कि मुझको भीड़ में दुनिया की जो खोने नहीं देता
                                  

शब्दार्थ
<references/>