भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे और मेरे बीच फासले तो हैं / प्रेमचंद सहजवाला

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 21 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमचंद सहजवाला }} {{KKCatGhazal}} <poem> तुम्ह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हारे और मेरे बीच फासले तो हैं
मगर खुशी है कि मिलने के सिलसिले तो हैं

चलोगे साथ तो हम भी कदम बढ़ाएंगे
ये बात और है उल्फत में मरहले तो हैं

अगरचे गाहे-ब-गाहे कहीं गिरेंगे ज़रूर
ज़हन में थोड़े से मज़बूत फैसले तो हैं

गुरूर कर न फलक-बोस आशियाने पर
ज़मीं की कोख में थोड़े से ज़लज़ले तो हैं

शजर हूँ तनहा मगर ये खुशी भी क्या कम है
मेरे वजूद पे थोड़े से घोंसले तो हैं