भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरे कूचे को वोह बीमारे-ग़म दारुश्शफ़ा समझे / ज़ौक़

Kavita Kosh से
Gaurav Sharma (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:11, 21 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तेरे कूचे को वोह बीमारे-ग़म दारुलशफा<ref>आरोग्य मंदिर </ref> समझे
अज़ल<ref>यमराज </ref> को जो तबीब <ref>वैद्य,चिकित्सक </ref> और मर्ग <ref> मृत्यु</ref> को अपनी दवा समझे

सितम को हम करम समझे जफ़ा को हम वफ़ा समझे
और इस पर भी न समझे वोह तो उस बुत से ख़ुदा समझे

समझ ही में नहीं आती है कोई बात ‘ज़ौक़’ उसकी
कोई जाने तो क्या जाने,कोई समझे तो क्या समझे

<KKMeaning>