भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तो इस तरह स्पर्श का जल अलग हुआ / मनमोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:03, 6 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनमोहन |संग्रह=जिल्लत की रोटी / मनमोहन }} एक दिन उ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन उसने पानी को स्पर्श करना चाहा


तब पानी नहीं था

त्वचा व्याकुल थी काँटे की तरह

उगी हुई, पुकारती हुई


यही मुमकिन था

कि वह त्वचा को स्पर्श से हमेशा के लिए

अलग कर दे


तो इस तरह स्पर्श से स्पर्श यानि जल

अलग हुआ

और उसकी जगह

खाली प्यास रह गई


किसी और दिन किसी और समय

मोटे काँच के एक संदूक में

बनावटी पानी बरसता है

जिसे वह लालच से देखता है

लगातार


पानी की कोई स्मृति

अब उसके पास नहीं है