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थकी झील : अनमने मुहाने / योगेन्द्र दत्त शर्मा

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अब न लौटेंगे कभी
उन्माद के वे पल सुहाने!

खो गये वे मेघ उन्मद
ध्वस्त-क्षत अमराइयां हैं
मौन पेड़ों की शिखा पर
डूबती परछाइयां हैं

झील थककर सो गई है
सो गये उन्मन मुहाने!

दूर सब संदर्भ छूटे
शेष टूटा सिलसिला है,
गुनगुने अहसास पर
जमती हुई हिम की शिला है

याद के पंछी न आयेंगे
यहां अब चहचहाने!

घाटियों के बीच
सहमी-सी हवाएं डोलती हैं
सांस में बेचैनियां
नीला जहर-सा घोलती हैं

थरथराती सिर्फ चुप्पी
सुगबुगाहट के बहाने!