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दिवाली आई है / उषा यादव

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झिलमिल जलते दीप,
दिवाली आई है।
खुशियों की सौगात,
अनूठी लाई है।

हँसता है आलोक,
मुँडेरों पर, छत पर।
जागर-मगर चाहूँदिशि,
उजियाली छाई है।

पकवानों की खुशबू,
उड़ती है घर-घर।
चूल्हा चढ़ी कढ़ाई
भी इतराई है।

है अनार, फुलझड़ी
और राकेट इधर।
उधर नाचती चरखी
सबको भाई है।

नए-नए कपड़ों में
बच्चे सजे हुए।
नई चमक सबके
चेहरे पर छाई है।

दिवाली है या फिर
पर्वों की रानी।
छम-छम करती उतर,
धरा पर आई है।