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देखल यथार्थ / महामाया प्रसाद 'विनोद'

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देखल यथार्थ
भोगल जिनगी,
मन में उठल भाव
कल्पना के उड़नखटोला पर
उड़ के आवेला।
कागज का धरती पर
रोशनाई का रंग से
अल्पना सजावेला।
भाव सॅसर जाला
छन्द छन जाला
कविता बन जाला।
जिनगी का ह ?
रोअत रात
मुस्कात भोर
पसेना से तर-तर
जेठ के दुपहर
जिनगी का ह ?
मेहनत-मजदूरी करत
टूसिआइल बचपन
खिलल जवानी
मुरझाइल बुढ़ापा ह।