भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देश अहींकेर थीक / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 5 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भाइ बन्धु, सुनै जाउ (जँ संभव हो) क’ लिय’ विश्वास
ई देश अहीँकेर थीक
अधलाह किंवा नीक-ई देश अहीँकेर थीक
कोसिका-कमला-बलान-बागमती-गंडक गंगाक बाढ़ि
बड़ अलबटाहि-बताहि युवती आँचरक पाढ़ि
उन्नत अपस्याँत राधिका, शिथिल अंग, सूतल कान्ह
आमक गाछी-बिरछीमे रातुक अन्हार
गाउ तिरहुत-बटगमनी आ मलार
सीबि सकत नहि कर्मक भोथल सूआ
फाटल पाढ़ि, जरल आँचर, मैल चिक्कट सैंसे नूआ
भगवती-थान
आरो दू-दस हाथ बान्हू मचान
सभ खबास-बोनिहार चलल जाइत रंगपुर-मोरंग कलकत्ता
गाछ-गाछमे लगा लिय’ बिर्नीकेर छत्ता
हाय, बिलाड़िक भागेँ कहियो नहि टूटल सीक
ई देश अहीँकेर थीक, ई देश अहीँकेर थीक

सूतल छथि सूर्य, के जगाओतग’ रति-जग्गीसँ
खोचाड़ि पौत के शयन-पर्यंक दू-बित्ता लग्गीसँ?

(अभिव्यंजना 1: 1960)