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द्वै चिरिया बतराय रई ऐं चौरे में / नवीन सी. चतुर्वेदी

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द्वै चिरिया बतराय रई ऐं चौरे में।
दरपन हम कूँ दिखाय रई ऐं चौरे में॥

गोरस कूँ गोरस कैसें कह देंइ कहौ।
गैया कूरौ खाय रई ऐं चौरे में॥

गामन सों हू स्वच्छ हबा के जुग बीते।
फटफटिया दन्नाय रई ऐं चौरे में॥

जीन्स और मोबाइल उन सूँ छीनंगे का।
बे जो जंगल जाय रई ऐं चौरे में॥

हम नें उन पे जब-जब जो-जो जुलम किये।
जमना जी दरसाय रई ऐं चौरे में॥

कैसें होय समाज समृद्ध तुम’इ बोलौ।
गागर छलकत जाय रई ऐं चौरे में॥