भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी देखों नदी देखों नदी तिलजुगबा कोसी गो देखि / अंगिका

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 11 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=अंगिका }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

नदी देखों नदी देखों नदी तिलजुगबा कोसी गो देखि
मैया जीवो थर थर काँपे, कोसी गो देवी ।
सगरे समैया कोसी माय उठि बैठि गमैलियै-गे मैया भादो मासे
साजले बारात कोसी माय गे देवी ।
जब तहूँ आहे कोसिका सलहेस देखले आवैत-
घाटे घाटे, नैया राखले छपाय, कोसी गो देवी ।
जब तहूँ आहे कोसिका नैया छपैले-
हाथी चढ़ि भैया उतरव पार
कोसी गो देवी ।
जब तहूँ आहे सूड़िया हाथी चढ़ि उतरबे
माझे धारे-हाथी देबौ डुवाय
माझे धारे ।
जब तहूँ आहे कोसिका हाथी दूड़ैव-
सीरा में बान्ह देवो बन्हाय-
मैया कोसी गे देवी ।
जब तहूँ आहे सूड़िया बान्ह बन्हैव
तोड़िके-समुख धार देवो बनाय ।
घाट बाट चढ़यो मैया दशोनहा पान
घर गेने-देबौ पाठी कटाय ।
बेर तोरा परलौ लाखें लाख कबूल वे-
घर गेने जेवै बिसराय ।
मैया कोसी गे देवी ।
जातो मोरा जेतौ, प्रानो तन हततै
तैयो न विसख तोर नाम ।
तोही जितले मैया, हमें हारलो,
दे मैया पार उतारि ।
मैया कोशी गे देवी ।