भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्ता पत्ता सन्यासी है / शैलेन्द्र सिंह दूहन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 4 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र सिंह दूहन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्ता पत्ता सन्यासी है,
मजबूरी में उपवासी है।
बेबस है शाखों की लचकन
सहमा-सहमा सारा जीवन,
बूढ़े बरगद की गर्दन में
आदर्शों की अब फाँसी है।
पत्ता-पत्ता सन्यासी है।
लम्हे सदियाँ निगल रहे हैं
गिरगिट की ज्यों बदल रहे हैं,
सपनों के किरचों पे लटकी
आशा राहों की दासी है।
पत्ता-पत्ता सन्यासी है
जड़ बिन जड़ सम्बन्ध हुए हैं
झूठे सब अनुबंध हुए हैं,
भावों की तुर्पाई उखड़ी
केशव का निधिवन बासी है।
पत्ता-पत्ता सन्यासी है,
भूखा बचपन छोह करे है
पेट पकड़ कर द्रोह करे है,
सूरज के हैं कंधे टूटे
रोटी रिश्वत की प्यासी है।
पत्ता-पत्ता सन्यासी है।
मन के सब उद्गार बिके हैं
गुलशन के आधार बिके हैं,
सब कुछ सस्ता कुर्सी महँगी
क्या काबा है? क्या काशी है?
पत्ता-पत्ता सन्यासी है।