भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्थर / नीलाभ

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:43, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |संग्रह=चीज़ें उपस्थित हैं / नीलाभ }} तुम अपने साथ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम अपने साथ लिए फिरते हो

हज़ारों वर्षों का इतिहास

तुम्हारी झुर्रियों में

दफ़न हैं

सैकड़ों कथाएँ


लेकिन इन दिनों मेरी मेज़ पर

अपनी लम्बी यात्रा के बीच

कुछ समय के लिए

विश्राम करते हुए

तुम कितने शान्त लगते हो


कभी-कभी मुझे महसूस होता है

तुम्हें हल्के से टकोरूँ तो तुमसे

संगीत का एक सोता फूट निकलेगा


(लन्दन, 1982)