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परबोधन / पतझड़ / श्रीउमेश

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यै गाछी केॅ एक बटोहीं नजदीकोॅ सें देखै छै।
”ओछोॅ जी नैं करियोॅ भैया!“ ओकरा खूव समोखै छै॥
‘तों उदास। छोॅ रौद सहै छोॅ’ दुनियाँ केॅ छाया दै छोॅ।
”फलो तलक दोसरै केॅ दै छोॅ’ बदला में तों की लै छोॅ॥
तोहरोॅ सुखलोॅ पत्तो देखोॅ, केकरै सुख के छै साधन।
पतबिछनीहौं हँसो-खुसी सें खूब बटोरै छै जारन॥
स्वर्ग-लोक में सभे अमर छै, नया जान नै आबै छै।
बुतरू लेॅ सब अमर-देवता कत्तेॅ आज ललावै छै॥
खरचा जहाँ, वहीं आमद छै, सम्भैं यह सुनाबै छै।
तों अधीर नैं हुओॅ अरे! तोहरो दिन फिरलोॅ आबै छै॥
आबै छै रितुपति वसन्त; छौ तोहरा दुख के अन्त वहाँ।
नया-नया कोंपल तोहरा में फूटी जैथौं जहाँ-तहाँ॥
लाल-लाल किसलय फूटी केॅ देथौं तोहरा हरियाली।
कुहू-कुहू करथौं कोइलिया नाची-नाची मतवाली॥
फेनू जुटतै बाट-बटोही, चिड़िया-मुनियाँ डारी पर।
बोॅर-बराती सभे झुकरथौं देखिहौं तोरा द्वोरा द्वारी पर॥
कटनी या अलगनी बाद लहरै छै फैनू जेना खेत।
महा प्रलय के नया सृस्टि के उभरै के औन्हें संकेत॥
पतझड़ छै संकेत नया कोंपल गाछी में आवैके॥
नया फल फूल रंग नया, आनन्द नया उमगावै के॥
दुख के बाद सुखे आवै छै, होली हुल्लड़ गावै के।
पतझड़ छेकै सान्ति-दूत, सुख के सन्देस सुनाबै के॥
उन्नेॅ वहेॅ बटोही गेलै हमरोॅ जी परबोधी केॅ।
हम्मू ढाड़स बाँधलाँ भैया! चित्त बहुत संतोखी केॅ॥
प्यार कहाँ? सिंगार कहाँ छै? कौने साज सजावै छै।
याद पुरानोॅ आवै छै तेॅ टीस नया उपजाबै छै॥