भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रयाण गान / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:56, 18 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदेव शर्मा 'पथिक' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओ नौजवान हिन्द के बढ़े चलो! बढ़े चलो!
तू दीप रामराज के समाज को गढ़े चलो!

स्वदेश के सपूत हो-विहान की कड़ी बनो,
ओ नौनिहाल! देश के विकास की लड़ी बनो।
कि घिर रहा है अन्धकार हाथ में मशाल लो,
जो जल रही दिशा-दिशा
तो ज़िन्दगी को ढ़ाल लो!

हहर रहा तूफान हो-कमान पर चढ़े चलो!
ओ नौजवान हिन्द के बढ़े चलो! बढ़े चलो!

तू भीष्म के सपूत हो-तू राम के समान हो,
तू लाल आग क्रांति की-कृपाण के समान हो!
ओ शांतिदूत! विश्व के विनाश का विरोध कर,
है बस रहा नया नगर कि
पाँव बढ़ रहे जिधर!

न जग रहा जहान हो-महान स्वर पढ़े चलो!
ओ नौजवान हिन्द के बढ़े चलो-बढ़े चलो!

दे आँधियाँ चुनौतियाँ
झुकी नहीं जवानियाँ, पहाड़ या पहाड़ियाँ रुकी नहीं रवानियाँ!
न मिट सकी कहानियाँ शहीद की, महान की,
आगे बढ़ रहे हैं पाँव, राह नौजवान की!
तू ज़िन्दगी के गान से जमीन को मढ़े चलो!
ओ नौजवान हिन्द के बढ़े चलो-बढ़े चलो!

 तनी हुई हैं छातियाँ चल रही है गोलियाँ,
खेल कर मरे नहीं तू खून की भी होलियाँ,
तू खून हो शहीद के-मस्तियों की टोलियाँ
नौजवान! हम तुम्हें लगा रहे हैं रोलियाँ!

तो तुम नया प्रयाण-पथ गढ़े चलो! गढ़े चलो!
ओ नौजवान हिन्द के बढ़े चलो-बढ़े चलो!